पुरुष और स्त्रीत्व
स्त्री को सिर्फ काया समझना असली पुरुष का विवेक नहीं है | असली पुरुष वही है जो स्त्री को नहीं, स्त्रीत्व को छू पाता है | सामान्य अर्थो में स्त्री की कल्पना मात्र एक माँ, पत्नी, बहन, प्रेमिका और सहेली या दोस्त और सन्तान के रूप में ही की जाती है | परन्तु स्त्री के अंदर जो स्त्रीत्व का भाव छुपा है, उसको देख पाना हर पुरुष के बस की बात नहीं | वास्तव में स्त्रीत्व ही एक स्त्री के अंदर का असल गहना है जो प्रकृति द्वारा मानवता को प्रदत अनमोल उपहारों में अमूल्य है | स्त्रीत्व का भाव केवल मानव मात्र तक सीमित नहीं है अपितु यह संपूर्ण जंतु समुदाय के साथ साथ समस्त संसार पर लागू होता है |
मूलत: स्त्रीत्व एक गहन और बहुआयामी अवधारणा है, जो केवल जैविक और सामाजिक भावनाओ तक सीमित नहीं है, जिसको इस प्रकार समझा जा सकता है –
आध्यात्मिक रूप में स्त्रीत्व सृजन, मातृत्व, और करुणा का केंद्र है, जिसका सीधा सम्बन्ध प्रकृति, पृथ्वी और जीवन कि उत्पत्ति से है | यह अत्यंत स्पष्ट है कि स्त्रीत्व के भाव के बिना जीवन की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती |
सामाजिक रूप में स्त्रीत्व का अर्थ उन गुणों और भूमिकाओ से है जो महिलाओ से पारम्परिक रूप से अपेक्षित होते है जेसे कोमलता, सहनशीलता, पालन पोषण | वास्तव में यह रूप पितृसत्तात्मक समाज की सीमाओ से प्रभावित होता आया है |
नारीवादी रूप में स्त्रीत्व स्वतंत्रता, गरिमा, स्वायतता, और व्यक्तिगत पहचान का एक भाव है | यह भाव स्त्रीत्व को एक स्वतंत्र और सशक्त रूप में स्वीकार करता है, जिसमे रचना और विनाश की गहन शक्ति अमूर्त रूप से विद्यमान होती है |
आधुनिक रूप में स्त्रीत्व एक तरल और गतिशील अवधारणा है, जो किसी एक रूप तक सीमित नहीं है | इसके विभिन्न रूप विभिन्न समुदायों में सामाजिक और सांस्कृतिक सीमाओं के अधीन है |
अंततः स्त्रीत्व का भाव केवल शारीरिक गुणों तक सीमित नहीं है, अपितु यह जेविक उत्पति, आत्मा, विचार और सामाजिक सरंचना का विशिष्ट और विस्तृत रूप है |
इसी प्रकार स्त्री भी सिर्फ काया मात्र नहीं है, यह काया रुपी ह्रदय है जिसमे स्त्रीत्व जैसा अमूल्य भाव विराजमान है | असली पुरुष को चाहिए कि वह सिर्फ स्त्री रूपी काया को न छूए, स्त्री रुपी हृदय को छूए जिसमे स्त्रीत्व का अमूल्य भाव विराजमान हो |