आज फिर माँ की आँखों में सवाल थे, क्या कोख में इतने माह रखने के बाद भी बस पिता के नाम और वंश को ही चलाएगा उसका बेटा | खुद के खून से मथकर मख्खन की तरह बने दूध पिलाने के बाद भी क्या उसका कोई वजूद कोई नाम नहीं | बस पिता के नाम और वंश का उपनाम ही रहेगा उसके बेटे की पहचान | क्या माँ का नाम, उसकी तपस्या और त्याग की कोई जगह नहीं इस झूठी दुनिया में……….तो फिर ठीक ही ऐसा कहना –
“माँ के नाम और त्याग को कोई मिटा नहीं पाया |
पिता के नाम और शान को कोइ छिपा नहीं पाया ||
माँ के प्यार और तपस्या की, हर धूप – हर छांव सुहानी है |
सदियों से मूक है माँ, बस यही कहानी है, बस यही कहानी है” ||