श्री कृष्ण कहते है, अर्जुन मै ही तो हू त्रिलोकी, जग कल्याणकर्ता |
और अर्जुन कहता है मै ही हू अज्ञानी, अधीर और अधर्मी |
जब अज्ञानी अर्जुन युद्ध भूमि में धनुष त्यागकर बेठा था अधीर होकर, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन के सभी मोह माया का खंडन कर सही मार्ग दिखाया |
और जब महाज्ञानी श्री कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर सुदर्शन लेकर चले थे, भीष्म को मारने, तब अर्जुन ने उनके पैरो में वंदन कर, उनको रोककर उनको अपनी प्रतिज्ञा न तोड़ने का मार्ग दिखाया |
क्या ज्ञानी और अज्ञानी का ये माया जाल सखा का अभाव है? जब दोनों एक दूसरे के सखा बनते है, तब न कोई माया जाल, न कोई अज्ञान |
अब सोचना ही होगा आत्मा और मन में, कोंन है अर्जुन कोन है कृष्ण, या फिर दोनों सिर्फ सखा है एक दुसरे के लिए ?
अब सोचना ही होगा कर्म और भाग्य में, कोंन है अर्जुन कौन है कृष्ण, या फिर दोनों सिर्फ सखा है एक दूसरे के लिए ?
और सोचना ही होगा अब, क्या है कोई आपके पास, अर्जुन या कृष्ण जेसा “सखा” ?