समत्वम – अर्थात हर परिस्थिति में समान भाव रखना, न सुख में अहंकार न दुःख में अवसाद।
ठीक ही कहा गया है –
“सुख-दुख की आंधियाँ चलें, फिर भी अडिग रहो,
जीवन के हर रंग में, संतुलन से खड़े रहो।
न जय में गर्व, न हार का ग़म,
जो समत्व पा गया, वही हुआ परम।”
“सुख आए तो बहक न जाना, दुख आए तो सहम न जाना,
लहरों की तरह उठो-गिरो, पर सागर सा थम न जाना।
न हार में शिकवा, न जीत में गुमान हो,
हर हाल में स्थिर मन का सम्मान हो।
समत्व की जो राह चले, वो अडिग महान हो,
अपने ही प्रकाश से, हर अंधियारा शमसान हो।“