समत्वम – अर्थात हर परिस्थिति में समान भाव रखना, न सुख में अहंकार न दुःख में अवसाद। ठीक ही कहा गया है – “सुख-दुख की आंधियाँ चलें, फिर भी अडिग रहो, जीवन के हर रंग में, संतुलन से खड़े रहो। न जय में गर्व, न हार का ग़म, जो समत्व पा गया, वही हुआ परम।”...
समत्वम – अर्थात हर परिस्थिति में समान भाव रखना, न सुख में अहंकार न दुःख में अवसाद। ठीक ही कहा गया है – “सुख-दुख की आंधियाँ चलें, फिर भी अडिग रहो, जीवन के हर रंग में, संतुलन से खड़े रहो। न जय में गर्व, न हार का ग़म, जो समत्व पा गया, वही हुआ परम।”...
पुरुष और स्त्रीत्व स्त्री को सिर्फ काया समझना असली पुरुष का विवेक नहीं है | असली पुरुष वही है जो स्त्री को नहीं, स्त्रीत्व को छू पाता है | सामान्य अर्थो में स्त्री की कल्पना मात्र एक माँ, पत्नी, बहन, प्रेमिका और सहेली या दोस्त और सन्तान के रूप में ही की जाती है |...
श्री कृष्ण कहते है, अर्जुन मै ही तो हू त्रिलोकी, जग कल्याणकर्ता | और अर्जुन कहता है मै ही हू अज्ञानी, अधीर और अधर्मी | जब अज्ञानी अर्जुन युद्ध भूमि में धनुष त्यागकर बेठा था अधीर होकर, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन के सभी मोह माया का खंडन कर सही मार्ग दिखाया | और जब...
(एपिसोड 1)……. अमरकंटक की सबसे उंची पहाड़ी पर बहुत तेजी से लम्बे लम्बे कदमो के साथ चलती जा रही थी वो | बिखरे बाल, बड़ी आंखे, चेहरे पर गुस्सा, भोहे तनी हुई, माथे पर सिलवट और सुर्ख लाल होठ | उसके आगे और पीछे वाले लोग बस एकटक घूरे जा रहे थे, उसको, मानो दुनिया...
यूं तो बहुत सारे जवाब है “जिन्दगी” जेसे सवाल के || मगर, “मौत” जेसा जवाब कोई दूसरा कहाँ ||
आज फिर माँ की आँखों में सवाल थे, क्या कोख में इतने माह रखने के बाद भी बस पिता के नाम और वंश को ही चलाएगा उसका बेटा | खुद के खून से मथकर मख्खन की तरह बने दूध पिलाने के बाद भी क्या उसका कोई वजूद कोई नाम नहीं | बस पिता के नाम...