केंसर ! बस जो एक बार पता लग जाये की केंसर हो गया है, मानो पता लगते ही जान आधी हो जाये |
क्या है केंसर ?
केंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमे शरीर की असामान्य कोशिकाए अनियंत्रित रूप से न सिर्फ बढती है, बल्कि पूरे शरीर में फेलकर सामान्य कोशिकाओ पर अतिक्रमण भी करती है|
केंसर के कारण
केंसर का कोई एक निश्चित कारण बता पाना सम्भव नही है, परन्तु तम्बाकू, धूम्रपान, विकिरण, रसायन, कोई संक्रमण जेसे एच पी वी इन्फेक्शन, अन्य आनुवंशिक त्रुटी जेसे डीएनए में कुछ उत्परिवर्तन आदि, केंसर के सभावित कारण हो सकते है |
केंसर के प्रकार
सामान्यत टयूमर 2 प्रकार के होते है –
- सौम्य ट्यूमर (Benign) : ये कैंसर वाले ट्यूमर नहीं होते। सौम्य ट्यूमर में कोशिकाएं शरीर के अन्य भागों में नहीं फैलते। जेसे लाइपोमा
- घातक ट्यूमर (Malignant) : ये कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं, और इन ट्यूमर की कोशिकाएं आसपास के ऊतकों पर आक्रमण कर सकती हैं तथा शरीर के अन्य भागों में फैल सकती हैं। इन्ही ट्यूमर को केंसर में शामिल किया जाता है |
केंसर के अन्य मुख्य प्रकार इस प्रकार है –
ल्युकेमिया : अस्थिमज्जा और रक्त का कैंसर।
कार्सिनोमा : त्वचा या उन ऊतकों में उत्पन्न होने वाला कैंसर , जो आंतरिक अंगों के स्तर या आवरण बनाते हैं।
सारकोमा : हड्डी, उपास्थि, वसा, मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं या अन्य संयोजी ऊतक से होने वाला कैंसर
लिंफोमा और माएलोमा : ऐसा कैंसर जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं में शुरू होता है।
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर : कैंसर जो कि मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ऊतकों में शुरू होता हैं।
न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर – मुख्य रूप से GIT, अग्न्याशय, फेफड़ों जैसे अंगों को प्रभावित करते हैं। जेसे अग्न्याशय के गेसट्रीनोमस |
कैंसर के लक्षण – कुछ सामान्य लक्षणों की सूची इस प्रकार है –
– शरीर के किसी भाग में गांठ का होना।
– स्वर बैठना या खाँसी ना हटना।
– मुह,नाक गुदा या शरीर के किसी अन्य भाग से खून का आना
– आंत्र या मूत्राशय की आदतों में परिवर्तन।
– निगलने के समय कठिनाई होना।
– वजन में बिना किसी कारण के वृद्धि या कमी।
– असामान्य डिस्चार्ज जेसे योनी से होने वाले डिस्चार्ज में परिवर्तन ।
– कमजोर लगना या बहुत थकावट महसूस करना।
– रक्ताल्पता या अनीमिया होना
– भूख लगना कम होना या बंद हो जाना
-सम्बंधित स्थान पर असहनीय पीड़ा का होना
कैंसर की रोकथाम – कैंसर होने के खतरे को कम करने के कुछ तरीके इस प्रकार हैं:
– तंबाकू उत्पादों का प्रयोग न करें।
– कम वसा वाला भोजन करें
– सब्जी, फलों और अनाजों का उपयोग अधिक करें।
– नियमित व्यायाम करें।
– केमिकल रेडिएशन से बचे |
– परबेंगनी किरणों से अपना बचाव करे |
केंसर की जांच –
प्रयोगशाला परीक्षण – रक्त, मूत्र, या अन्य तरल पदार्थों की मदद से डॉक्टर इसकी जांच कर सकता है। इसके अलावा, शरीर में कुछ पदार्थों की भारी मात्रा से भी कैंसर का संकेत मिलता है। इन पदार्थों को अक्सर ट्यूमर मार्कर कहा जाता है जेसे CA 125
बायोप्सी – मतलब सम्बंधित जगह की कोशिकाए लेकर उसकी जांच करना | इसमें नमूने कई विधियों से लिये जा सकते हैं :
सुई के जरिए (FNAC) : ऊतक या तरल पदार्थ निकालने के लिये डॉक्टर एक सुई का उपयोग करता है।
एंडोस्कोप के जरिए : शरीर के अंदर के क्षेत्रों को देखने के लिये डॉक्टर एक पतली, ट्यूब (एंडोस्कोप) का उपयोग करता है। डॉक्टर ट्यूब के माध्यम से ऊतक या कोशिकाओं को प्राप्त कर सकते हैं।
सर्जरी के जरिए : एक छोटा हिस्सा काटकर या सम्पूर्ण रूप में निकल कर उसकी जांच की जा सकती है |
इमेजिंग प्रक्रिया-
एक्स – रे : एक्स-रे शरीर के अंदर के अंगों और हड्डियों को देखने का सबसे आम तरीका हैं।
सीटी स्कैन : इस विधि में एक एक्स-रे मशीन एक कंप्यूटर से जुड़ी होती है, जो किसी कंट्रास्ट सामग्री (जैसे कि डाई के रूप में ) अंगों के विस्तृत चित्रों की एक श्रृंखला बनाता है।
रेडियोन्युक्लाइड स्कैन : इसमें रेडियोएक्टिव डाई की एक छोटी मात्रा इंजेक्शन के द्वारा रक्त से होकर बहती है और कुछ हड्डियों या अंगों में जमा हो जाती है। स्कैनर कंप्यूटर स्क्रीन पर या फिल्म पर हड्डियों या अंगों के चित्र बनाता है।
अल्ट्रासाउंड : इसमें कोई अल्ट्रासाउंड उपकरण ध्वनि तरंगें प्रेषित करता है जिन्हें लोग नहीं सुन सकते हैं। तरंगें शरीर के अंदर के ऊतकों पर प्रतिध्वनियों की तरह टकराकर वापस लौटती है। कंप्यूटर इन प्रतिध्वनियों का उपयोग चित्र बनाने के लिये करता है जिसे सोनोग्राम कहते हैं
एमआरआई : एक मजबूत चुंबक से जुड़े कंप्यूटर से शरीर के हिस्सों के विस्तृत चित्र बनाने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है।
F – 18 सोडियम फ्लोराइड बोन स्कैन – पेट स्कैन का ही एक प्रकार है जिसका प्रयोग हड्डियों के केंसर को पहचानने में किया जाता है |
कैंसर का उपचार
कैंसर की चिकित्सा में शल्य चिकित्सा, रेडिएशन थेरेपी, किमोथेरेपी, तथा इम्यूनोथेरेपी, पेलिएटिव केयर, आयुरोंकोलोजी शामिल हैं। कैंसर की स्थिति के आधार पर एक या संयुक्त प्रक्रिया अपनायी जा सकती है।
शल्य चिकित्सा – यदि सही समय पर केंसर का पता लग जाये तो शल्य चिकित्सा काफी सारे केंसर के लिए राम बाण की तरह काम करती है |
कीमो थेरेपी – ये एकल या संयोजन कीमोथेरेपी के रूप में प्रयोग की जा सकती है, बुसल्फान, कार्बोप्लाटिन आदि | ये इंजेक्शन और गोली दोनों रूपों में प्रयोग कर सकते है |
रेडिएशन थेरेपी – जेसे इंटेंसिटी मॉड्यूलेटेड रेडिएशन थेरेपी, इमेज गाइडेड रेडिएशन थेरेपी और थ्री-डायमेंशनल कंफर्मेशन रेडिएशन थैरेपी आदि |
कीमो या रेडिएशन थेरेपी कैंसर की कोशिकाओं को प्रभावित करने के साथ ही शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी कुछ नुकसान पहुंचा सकती है ।
पेलिएटिव केयर – विशेष प्रकार की चिकित्सा प्रणाली है, जो बीमारी में विशेष लक्षणों (जेसे दर्द आदि) से रहत दिलाती है | एडवांस स्टेज के केंसर में ये बहुत कारगर है |
आयुरोंकोलोजी – यह बहुत ही विशेष चिकित्सा प्रणाली है, जिसमे सभी स्टेज के केंसर के रोगी को लाभ दिया जा सकता है, जेसे – सर्जरी करने के बाद दोबारा न हो इसलिए, रेडियो- कीमो थेरेपी के संभावित नुकसान को रोकने के लिए, जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए, अंतिम स्टेज के केंसर की स्तिथि में तकलीफ कम करने के लिए |
संक्षेप में बस यही कहा जा सकता है की केंसर चिकित्सा में अभी और शोध की आवश्यकता है | जितनी जल्दी केंसर की पहचान हो जाये उतने ज्यादा ठीक होने की उम्मीद होती है | सर्जिकल केंसर में सर्जरी करना पहली जरुरत है |
आयुरोंकोलोजी में भी बहुत स्कोप है, यहाँ प्रत्येक केंसर की प्रत्येक स्टेज के लिए कारगर औषधीया उपयोगी है | केंसर रोगी को यदि ठीक किया जाना संभव नहीं है, तो रोगी के सम्बन्धी परिचारक को कम से कम उसके जीवन की गुणवत्ता पर केन्द्रित चिकित्सा का चुनाव करना चाहिए |